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Sanjay S. Soni 

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तुम्हें याद हो न हो

तुम्हें याद हो न हो, मुझे तो हर बात याद है। कैसी ख्वाबों की दुनिया थी तेरी और मेरी... तुम्हें याद है शहर की हर गली में, तुम; मेरा साया ढूँढती थी! तु्म्हें याद है, तेरे लिए, मेरी बाँहों में कुल! जहान का सकून था - तुम्हें याद है, मेरी वजूद ही; तेरे लिए सारी दुनिया का वजूद था सब कुछ, सच में ... कुछ पिछले जन्मों की बात लगती है ... सुना है आज तेरी शादी है कोई अजनबी, तेरे संग ब्याह कर रहा था... सच मैं भी तुझे, कभी बहुत चाहा था ... जिस हाथ ने तेरी माँग भरी, काश उस हाथ की उँगलियाँ मेरी होतीं! जिन कदमों के ‍संग तूने फेरे लिए, काश उन कदमों के साये मेरे होते! जो मंत्र तुम दोनों के गवाह बने काश उन्हें मैंने भी दोहराया होता! कोई अजनबी तेरे संग ब्याह कर रहा था! शहर वाले तेरी शादी का खाना खा रहे थे; मुझे लगा, आज मेरी तेरहवीं है!!!

रेत भरी है इन ऑंखों में

रेत भरी है इन ऑंखों में, आंसू से तुम धो लेना कोई सूखा पेड मिले तो उस से लिपट के रो लेना उस के बाद तनहा हो जैसे जंगल का रस्ता जो भी तुम से प्यार से बोले साथ उसी के हो लेना कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ, जनम जनम की प्यासी है साहिल पर चलने से पहले अपने पांव भिगो लेना रोते क्यों हो दिल वालों की किस्मत ऐसी होती है सारी रात यूं ही जागोगे दिन निकले तो सो लेना मै ने दरिया से सीखी है पानी की पर्दादारी ऊपर ऊपर हंसते रहना, गहराई में रो लेना