गोलोक धाम में मणिरत्नों से सुशोभित श्रीगोवर्द्धन है। वहाँ गिरिराज की कंदरा में श्री ठाकुरजी गोवर्द्धनाथजी, श्रीस्वामिनीजी और ब्रज भक्तों के साथ रसमयी लीला करते है। वह नित्य लीला है। वहाँ आचार्य जी महाप्रभु श्री वल्लभाधीश श्री ठाकुरजी की सदा सर्वदा सेवा करते है। एक बार श्री ठाकुरजी ने श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु को देवी जीवों के उद्धार के लिए धरती पर प्रकट होने की आज्ञा दी। श्री ठाकुरजी श्रीस्वामिनीजी, ब्रज भक्तो के युथों और लीला-सामग्री के साथ स्वयं श्री ब्रज में प्रकट होने का आशवासन दिया।इस आशवासन के अनुरूप विक्रम संवत् १४६६ ई. स. १४०९ की श्रावण कृष्ण तीज रविवार के दिन सूर्योदय के समय श्री गोवर्धननाथ का प्राकट्य गिरिराज गोवर्धन पर हुआ। यह वही स्वरूप था जिस स्वरूप से इन्द्र का मान-मर्दन करने के लिए भगवान्, श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की पूजा स्वीकार की और अन्नकूट की सामग्री आरोगी थी।श्री गोवर्धननाथजी के सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य एक साथ नहीं हुआ था पहले वाम भुजा का प्राकट्य हुआ, फिर मुखारविन्द का और बाद में सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य हुआ। सर्वप्रथम श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) सं. १४६६ क
जयसमंद झील 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली गोविंद बल्लभ पंत सागर के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। यह झील जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य (Jaisamand Wildlife Sanctuary) से घिरी हुई है जो कई तरह के दुर्लभ जानवरों और प्रवासी पक्षियों का आवास स्थान है। उदयपुर की रानी के ग्रीष्मकालीन महल भी इस झील को एक सुंदर जगह बनाते हैं। बता दें कि इस झील के बांध पर छह सेनेटाफ और शिव को समर्पित एक मंदिर है। यह मंदिर इस बात को बताता है कि मेवाड़ के लोग दैवीय शक्ति के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध थे। कई स्थनीय लोग इस झील को धेबर झील (Dhebar Lake) के नाम से भी जानते हैं। जयसमंद झील उदयपुर शहर के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है जो स्वच्छ और सुंदर होने के साथ ही प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। जो भी इंसान शहर की उथल-पुथल से दूर शांति में समय बिताना चाहता है उसके लिए इस झील की यात्रा करना बेहद यादगार साबित हो सकता है। अगर आप जयसमंद झील घूमने की योजना बना रहे हैं तो बता दें कि इस लेख में हम आपको जयसमंद झील के इतिहास और घूमने की जानकारी देने जा रहे हैं। 1. जयसम