Skip to main content

Posts

Showing posts with the label हक्का-बक्का

जीवन की आपाधापी में

जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला। जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में, हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा, आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?