Skip to main content

खुशियों की सोदेबाजी


बहुत कोशिश की।। बहुत मनाया सभी को।। लेकिन किस्मत में लिखा होता हे की ऐ इंसान तू कितने भी नेक काम कर ले।। जब तक में तेरी राह में खड़ा हु दुश्मन बन कर में तुजको कही भी आगे नहीं बढ़ने दूंगा..

बस। मेरी जिंदगी में मेरे दुश्मन मेरे आस पास ही हे। जिनको में अपना समजता हु वही मुझसे दुश्मनी निभा रहे हे शायद यही कुछ मेरी पिछली जिंदगी के दोष होंगे जिन्हें में इस जनम में तिल तिल मर के हर रोज़ भुगत रहा हु। 

यहाँ किसको कहु की मुझे मेरी जिंदगी में आगे बढ़ने दे।। रुकावट मत बनिए। 

मुझे भी जीने का हक हे अपने हिसाब से। लेकिन आज में। कितना भी अच्चा काम करता हु हर बार जलील होता हु।। 

लेकिन जिंदगी में बहुत कम समय ऐसा आता हे की इंसान को इन् दुखो से छुटकारा मिल सके।। में लड़ रहा हु और लड़ता रहूँगा। 
और आज सीधे सीधे उन् सभी को मेरी और से challenge हे की जितना करना हे मेरे साथ बुरा व्यवहार कर लीजिये।। में एक माटी का कतरा हु।। आज हु कल नहीं होऊंगा और ये वादा हे मेरी सबसे की आज जितना सताओगे जितना अपने व्यवहार से मुझे तडपाओगे  में उतना ही मेरी आवाज़ और बुलंद करूँगा और वादा हे की मेरे ना होने के बाद आप सभी को मेरी अहमियत महसूस जरुर होगी।। 

जब चुप चुप के याद मेरी आएगी सभी भरी हुई आखो से खुद को छुपाओगे।। और तब में ही आपके आस पास से आपको देख के कोशिश करूँगा की आप इतनी तकलीफ मत करो।। मेने वो किस्सा ख़तम कर दिया जिससे आप सभी को तकलीफ थी।। अब आप बस खुश रहिये और खुश रखिये सभी को।। 

एक पत्नी जिसको शादी के बाद संपूर्ण तरीके से पति का होना चाहिए आज वो पति की न होकर अपनी माँ की हे।। ये मेरी ख़ुशी की सबसे बड़ी सोदेबाजी।।।

आज से ये उम्मीद छोड़ के बता हु की कभी मुझे मेरे मन से कुछ करने की आज़ादी मिलेगी।। किसी से कोई गिला न शिकवा हे। 

बस ऊपर वाले से दुआ हे की में रहू न रहू। मेरे हिस्से में अगर खुशिया हो तो वो सब उनके दामन  में.....


Comments

Popular posts from this blog

Log kehte hein

Log kehte hein sayaana ho gaya he, ab bachhaa nahi he, Kuch bhi kahe ye zamana, magar sab kuchh sachha nahi he, Kyonki tuujhse bichadh kar ‘maa’, teraa beta achhaa nahi he. Pesaa kamaane tujhe chhod mein pardesh aaya, Teri duaaon se jitnaa maanga, use jyada paya, Lagaata rahaa hisaab, gintaa raha bas kya kamaaya, Kabhi sochaa nahi ki mein kya ganwayaa, Tootne ko he daali se bas, kyonki pak gaya aam ab kachha nahi he, Kyonki tuujhs...... Ek jheel si gehri aankhon waali ka pyar mila, Thoda bahut nahi, beshumaar mila, Hasrat rahi unki apni bahu ko gale lagaane ki, Lekin mere maa-baap ko to bas intezaar mila, Ho sake to maaf kar denaa,kyoki swaarthi he tera beta par swechha nahi he, Kyonki tuujhs.... Geeton me dooba rehne wala ab gungunaata nahi he, Hansne ki baat par bhi ab muskurata nahi he, Meri shararaton ki dekar sazaa tu ro padti thi, Lekin tera beta ab kisi ko rulaata nahi he.... or log hamesha kahte he ki tera beta jane k baad sayana ho gaya.... :'( pain for loosing someone

जयसमंद झील का इतिहास और घूमने की जानकारी

जयसमंद झील 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली गोविंद बल्लभ पंत सागर के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है। यह झील जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य (Jaisamand Wildlife Sanctuary) से घिरी हुई है जो कई तरह के दुर्लभ जानवरों और प्रवासी पक्षियों का आवास स्थान है। उदयपुर की रानी के ग्रीष्मकालीन महल भी इस झील को एक सुंदर जगह बनाते हैं। बता दें कि इस झील के बांध पर छह सेनेटाफ और शिव को समर्पित एक मंदिर है। यह मंदिर इस बात को बताता है कि मेवाड़ के लोग दैवीय शक्ति के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध थे। कई स्थनीय लोग इस झील को धेबर झील (Dhebar Lake) के नाम से भी जानते हैं। जयसमंद झील उदयपुर शहर के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है जो स्वच्छ और सुंदर होने के साथ ही प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के सामान है। जो भी इंसान शहर की उथल-पुथल से दूर शांति में समय बिताना चाहता है उसके लिए इस झील की यात्रा करना बेहद यादगार साबित हो सकता है। अगर आप जयसमंद झील घूमने की योजना बना रहे हैं तो बता दें कि इस लेख में हम आपको जयसमंद झील के इतिहास और घूमने की जानकारी देने जा रहे हैं। 1. जयसम

श्रीनाथजी महाप्रभु का प्राकट्य

गोलोक धाम में मणिरत्नों से सुशोभित श्रीगोवर्द्धन है। वहाँ गिरिराज की कंदरा में श्री ठाकुरजी गोवर्द्धनाथजी, श्रीस्वामिनीजी और ब्रज भक्तों के साथ रसमयी लीला करते है। वह नित्य लीला है। वहाँ आचार्य जी महाप्रभु श्री वल्लभाधीश श्री ठाकुरजी की सदा सर्वदा सेवा करते है। एक बार श्री ठाकुरजी ने श्री वल्लभाचार्य महाप्रभु को देवी जीवों के उद्धार के लिए धरती पर प्रकट होने की आज्ञा दी। श्री ठाकुरजी श्रीस्वामिनीजी, ब्रज भक्तो के युथों और लीला-सामग्री के साथ स्वयं श्री ब्रज में प्रकट होने का आशवासन दिया।इस आशवासन के अनुरूप विक्रम संवत् १४६६ ई. स. १४०९ की श्रावण कृष्ण तीज रविवार के दिन सूर्योदय के समय श्री गोवर्धननाथ का प्राकट्य गिरिराज गोवर्धन पर हुआ। यह वही स्वरूप था जिस स्वरूप से इन्द्र का मान-मर्दन करने के लिए भगवान्, श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की पूजा स्वीकार की और अन्नकूट की सामग्री आरोगी थी।श्री गोवर्धननाथजी के सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य एक साथ नहीं हुआ था पहले वाम भुजा का प्राकट्य हुआ, फिर मुखारविन्द का और बाद में सम्पूर्ण स्वरूप का प्राकट्य हुआ। सर्वप्रथम श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) सं. १४६६ क